रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से By Sher << वो उम्मीद क्या जिस की हो ... ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर... >> रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से बहलाए जाते हैं यहाँ प्यासे सराब से Share on: