रात रो रो के गुज़ारी है चराग़ों की तरह By Sher << तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र ... क्यूँ न 'तनवीर' फ... >> रात रो रो के गुज़ारी है चराग़ों की तरह तब कहीं हर्फ़ में तासीर नज़र आई है Share on: