रौशन अलाव होते ही आया तरंग में By Sher << मिरे लहू से जिस के बर्ग-ओ... अब तो जो शय है मिरी नज़रो... >> रौशन अलाव होते ही आया तरंग में वो क़िस्सा-गो ख़ुद अपने में इक दास्तान था Share on: