रिंदान-ए-इश्क़ छुट गए मज़हब की क़ैद से By Sher << बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए... मुख़्तार हैं वो लिक्खें न... >> रिंदान-ए-इश्क़ छुट गए मज़हब की क़ैद से घंटा रहा गले में न ज़ुन्नार रह गया Share on: