रूह की गहराई में पाता हूँ पेशानी के ज़ख़्म By Sher << सैलाब उमँड के शहर की गलिय... पुराने ख़्वाबों से रेज़ा ... >> रूह की गहराई में पाता हूँ पेशानी के ज़ख़्म सिर्फ़ चाहा ही नहीं मैं ने उसे पूजा भी है Share on: