रुवाक़-ए-चशम में मत रह कि है मकान-ए-नुज़ूल By Sher << रुख़्सत करने के आदाब निभा... इक मिरे दम के लिए कितने ह... >> रुवाक़-ए-चशम में मत रह कि है मकान-ए-नुज़ूल तिरे तो वास्ते ये क़स्र है बना दिल का Share on: