शायरी फूल खिलाने के सिवा कुछ भी नहीं है तो 'ज़फ़र' By Sher << जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बो... एक ऐसा भी वक़्त होता है >> शायरी फूल खिलाने के सिवा कुछ भी नहीं है तो 'ज़फ़र' बाग़ ही कोई लगाता कि जहाँ खेलते बच्चे जा कर Share on: