सदियों में जा के बनता है आख़िर मिज़ाज-ए-दहर By Sher << शहर जिन के नाम से ज़िंदा ... नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़... >> सदियों में जा के बनता है आख़िर मिज़ाज-ए-दहर 'मदनी' कोई तग़य्युर-ए-आलम है बे-सबब Share on: