घर तो क्या घर का निशाँ भी नहीं बाक़ी 'सफ़दर' By Sher << ज़िंदा रहने के तक़ाज़ों न... मैं उस को भूल जाऊँ रात ये... >> घर तो क्या घर का निशाँ भी नहीं बाक़ी 'सफ़दर' अब वतन में कभी जाएँगे तो मेहमाँ होंगे Share on: