समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई By Sher << सामने उस के न कहते मगर अब... समझ सको तो समझ लो मिरी नि... >> समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पन नहीं मिलता Share on: