सर सलामत है तो रौज़न भी बना लूँगा मैं By Sher << तुम हवस-परस्तों के सैंकड़... बाहर झूम रहा था मौसम फूलो... >> सर सलामत है तो रौज़न भी बना लूँगा मैं हब्स तेरे दर-ओ-दीवार से वाक़िफ़ मैं हूँ Share on: