सर-बुलंदी को यहाँ दिल ने न चाहा मुनइम By Sher << शाम पड़ते ही किसी शख़्स क... फ़स्ल-ए-गुल आई जुनूँ उछला... >> सर-बुलंदी को यहाँ दिल ने न चाहा मुनइम वर्ना ये ख़ेमा-ए-अफ़्लाक पुराना क्या था Share on: