सौ सौ तरह के वस्ल ने मरहम रखे वले By Sher << शब-ए-अव्वल तो तवक़्क़ो पे... सर को न फेंक अपने फ़लक पर... >> सौ सौ तरह के वस्ल ने मरहम रखे वले ज़ख़्म-ए-फ़िराक़ हैं मिरे वैसे ही तर हनूज़ Share on: