शब-ए-अव्वल तो तवक़्क़ो पे तिरे वादे के By Sher << शैख़ तू नेक-ओ-बद-ए-दुख़्त... सौ सौ तरह के वस्ल ने मरहम... >> शब-ए-अव्वल तो तवक़्क़ो पे तिरे वादे के सहल होती है बला होती है पर आख़िर-ए-शब Share on: