शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर By Sher << ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क... बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर ... >> शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर हाल अपना सुब्ह तक बे-रब्त नब्ज़ें क्या करें Share on: