शाम ने बर्फ़ पहन रक्खी थी रौशनियाँ भी ठंडी थीं By Sher << ख़याल क्या है जो अल्फ़ाज़... ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल न... >> शाम ने बर्फ़ पहन रक्खी थी रौशनियाँ भी ठंडी थीं मैं इस ठंडक से घबरा कर अपनी आग में जलने लगा Share on: