शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ रोज़-ए-वसलत चू उम्र कोताह By Sher << आए बुत-ख़ाने से काबे को त... दिन गुज़रते हैं गुज़रते ह... >> शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ रोज़-ए-वसलत चू उम्र कोताह सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ Share on: