शब-ए-हिज्र थी और मैं रो रहा था By Sher << क्यूँकर बढ़ाऊँ रब्त न दरब... सामने दीवार पर कुछ दाग़ थ... >> शब-ए-हिज्र थी और मैं रो रहा था कोई जागता था कोई सो रहा था Share on: