शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया By Sher << न हो रिहाई क़फ़स से अगर न... कभी तो शहीदों की क़ब्रों ... >> शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया हमें इंहिराफ़ का हौसला भी दिया तो मिस्ल-ए-दुआ दिया Share on: