शहर का शहर मिरी जाँ की तलब रखता है By Sher << तू हर इक का है और किसी का... आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे... >> शहर का शहर मिरी जाँ की तलब रखता है आज सोचा है यही जान का सदक़ा दे दूँ Share on: