शहर के आबाद सन्नाटों की वहशत देख कर By Sher << कुछ परिंदों को तो बस दो च... वक़्त भी अब मिरा मरहम नही... >> शहर के आबाद सन्नाटों की वहशत देख कर दिल को जाने क्या हुआ मैं शाम से घर आ गया Share on: