शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है By Sher << मिरे एहसास के आतिश-फ़िशाँ... ग़रीब-ए-शहर तो फ़ाक़े से ... >> शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से Share on: