शहर अब माँगता है साँस भी लेने का हिसाब By Sher << शो'ला-ए-इश्क़ तिरी चश... साँसों में कोई ख़ून सा दर... >> शहर अब माँगता है साँस भी लेने का हिसाब ज़िंदगी मुझ से क़यामत का सबब पूछती है Share on: