शैख़ जी मस्जिद में जाओ मय-कदे को छोड़ दो By Sher << सुना है तालियाँ बजती हैं ... नफ़रतों का इलाज करना है >> शैख़ जी मस्जिद में जाओ मय-कदे को छोड़ दो चार दिन की चाँदनी है फिर अँधेरी रात है Share on: