अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को By Sher << दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से ... ताब-ए-यक-लहज़ा कहाँ हुस्न... >> अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को हम ने पाया है ख़ुदा को सूरत-ए-इंसाँ के बीच Share on: