शाइ'री ताज़ा ज़मानों की है मे'मार 'फ़राज़' By शेर, Sher << ये शहर मेरे लिए अजनबी न थ... इस इंतिहा-ए-क़ुर्ब ने धुँ... >> शाइ'री ताज़ा ज़मानों की है मे'मार 'फ़राज़' ये भी इक सिलसिला-ए-कुन-फ़यकूँ है यूँ है Share on: