शाम प्यारी शाम उस पर भी कोई दर खोल दे By Sher << मिरी चाहतों में ग़ुरूर हो... आबाद करें बादा-कश अल्लाह ... >> शाम प्यारी शाम उस पर भी कोई दर खोल दे शाख़ पर बैठी हुई है एक बेघर फ़ाख़्ता Share on: