शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया By Sher << ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में... पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ ... >> शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया ऐसा नहीं तो क्यूँ मुझे दफ़ना रहे हैं लोग Share on: