मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ' By Sher << तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री... तुम्हारा नाम आया और हम तक... >> मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ' ख़ुदा जाने किधर का चाँद आज ऐ माह-रू निकला Share on: