शुऊर-ए-ज़िंदगी की रौशनी में By Sher << जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लो... आता नहीं अदू से यारी मुझे... >> शुऊर-ए-ज़िंदगी की रौशनी में शब-ए-ग़म भी सहर से कम नहीं है Share on: