सिवाए ख़ाक के बाक़ी असर निशाँ से न थे By Sher << किस दर्द से रौशन है सियह-... ये मय-कदा है यहाँ हैं गुन... >> सिवाए ख़ाक के बाक़ी असर निशाँ से न थे ज़मीं से दब गए दबते जो आसमाँ से न थे Share on: