सुब्ह से चलते चलते आख़िर शाम हुई आवारा-ए-दिल By Sher << सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रह... शहर जिन के नाम से ज़िंदा ... >> सुब्ह से चलते चलते आख़िर शाम हुई आवारा-ए-दिल अब मैं किस मंज़िल में पहुँचा अब घर कितनी दूर रहा Share on: