सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रही है आतिश-ए-महर By Sher << तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख... सुब्ह से चलते चलते आख़िर ... >> सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रही है आतिश-ए-महर रुमूज़-ए-रब्त-ए-गुरेज़ाँ खुले तो बात चले Share on: