सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ By Sher << सुर्ख़ियाँ अख़बार की गलिय... शाम की दहलीज़ पर ठहरी हुई... >> सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ अजब नहीं कि करें याद माह ओ साल मुझे Share on: