सुकूत-ए-शब में दर-ए-दिल पे एक दस्तक थी By Sher << ज़रा बदलूंगा इस बे-मंज़री... न जाने कैसा मसीहा था चाहत... >> सुकूत-ए-शब में दर-ए-दिल पे एक दस्तक थी बिखर गई तिरी यादों की कहकशाँ मुझ से Share on: