सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को By Sher << यहाँ जो है कहाँ उस का निश... कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क... >> सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को मैं कोहर में लिपटा हूँ शफ़क़ चाहिए मुझ को Share on: