कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला By Sher << सूरज हूँ चमकने का भी हक़ ... 'मजरूह' क़ाफ़िले ... >> कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला असीर-ए-ग़म कोई ज़िंदाँ से जैसे छूट कर निकला Share on: