तअल्लुक़ आशिक़ ओ माशूक़ का तो लुत्फ़ रखता था By मिज़ाह, Sher << था इरादा तिरी फ़रियाद करे... लाख आफ़्ताब पास से हो कर ... >> तअल्लुक़ आशिक़ ओ माशूक़ का तो लुत्फ़ रखता था मज़े अब वो कहाँ बाक़ी रहे बीवी मियाँ हो कर Share on: