तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात By Sher << तमाम शहर की आँखों में रेज... तभी वहीं मुझे उस की हँसी ... >> तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता Share on: