तार कस कर कोई रागनी छेड़ दे ऐ तवाइफ़ अज़िय्यत भरी रात है By Sher << मरने के बअ'द कोई पशेम... कैफ़ियत के इशारे पे तस्वी... >> तार कस कर कोई रागनी छेड़ दे ऐ तवाइफ़ अज़िय्यत भरी रात है जानती है सराए की हर ऊंटनी इस मुसाफ़िर की ये आख़िरी रात है Share on: