तौबा खड़ी है दर पे जो फ़रियाद के लिए By Sher << इतने डूबे हुए थे जीने में काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ मैं सब... >> तौबा खड़ी है दर पे जो फ़रियाद के लिए ये मय-कदा भी क्या किसी क़ाज़ी का घर हुआ Share on: