तवाफ़-ए-माह करना और ख़ला में साँस लेना क्या By Sher << उधर वो अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा... मैं वो रिंद-ए-नौ नहीं हूँ... >> तवाफ़-ए-माह करना और ख़ला में साँस लेना क्या भरोसा जब नहीं इंसान को इंसान के दिल पर Share on: