तेरे बदन की धूप से महरूम कब हुआ By Sher << ये मिट्टी मेरे ख़ाल-ओ-ख़द... चले तो पाँव के नीचे कुचल ... >> तेरे बदन की धूप से महरूम कब हुआ लेकिन ये इस्तिआरा भी मंज़ूम कब हुआ Share on: