तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश By Sher << तिलिस्म-ए-शेवा-ए-याराँ खु... सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रह... >> तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं Share on: