तिरे फ़लक ही से टूटने वाली रौशनी के हैं अक्स सारे By Sher << ये सदमा जीते जी दिल से हम... उन्हीं का नाम ले ले कर को... >> तिरे फ़लक ही से टूटने वाली रौशनी के हैं अक्स सारे कहीं कहीं जो चमक रहे हैं हुरूफ़ मेरी इबारतों में Share on: