तिरे वजूद को छू ले तो फिर मुकम्मल हो By Sher << दीवार-ओ-दर पे कृष्ण की ली... शाइरी में अन्फ़ुस-ओ-आफ़ाक... >> तिरे वजूद को छू ले तो फिर मुकम्मल हो भटक रही है ख़ुशी कब से दर-ब-दर मुझ में Share on: