तिरी बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं By Sher << रुश्द-ए-बातिन की तलब है त... जो ला-मज़हब हो उस को मिल्... >> तिरे बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं दिखा कभी मेरे ख़्वाबों का आईना मुझ को Share on: