तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी By Sher << हड्डियाँ मेरी अगर पाएँ तो... रंग तेरा उड़ा उड़ा सा है >> तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी है सूखने को पसीना मुआवज़ा है कहाँ Share on: