तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे By Sher << सुना है अर्श-ए-इलाही इसी ... वो जो आँसुओं की ज़बान थी ... >> तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे बे-ज़मीं लोगों के सर पर आसमाँ रहता नहीं Share on: