तुम्हारा नक़्श इन आँखों से धुलता भी तो कैसे By Sher << फ़ज़ा यूँही तो नहीं मल्गज... मैं ने भेजी थी गुलाबों की... >> तुम्हारा नक़्श इन आँखों से धुलता भी तो कैसे कि दरिया में वो पहली सी रवानी भी कहाँ थी Share on: